सागर । कुछ वस्तुएं ऐसी होती हैं जो स्वयं के कल्याण के साथ-साथ जगत के कल्याण के लिए भी शगुन जाती है, कल्याण तो उपदान से होता है लेकिन निमित्त कभी कभी किसी कल्याण का शगुन बन जाता है। महान आत्माये वह नही है जो महान मात्र है, वे महान आत्माये जगत में पूज्य बन जाती है जो दूसरों के लिए भी मंगलमय बन जाती है। कुछ आत्माये है जो अपने आप में बड़े है लेकिन दूसरे को उठाने में निमित्त नही है। इसलिए सर्वोत्तम कौन है, पहले देखे- क्या वह जगत के लिए मंगल है।
उत्तम को मंगल नही कहा गया, मंगल को उत्तम कहा गया। णमोंकार मंत्र में सिद्ध को पहले रखना चाहिए क्योंकि वह बड़े है, जबकि अरिहंत का स्वरूप पहले आ गया वह छोटे थे। अपन लोग यही सोचते हैं कि जो सबसे बड़ा है वही मंगल है जो श्रेष्ठ हो, महान हो तो ये मंगल की परिभाषा नही है। अनाज में बहुत बड़े बड़े अनाज होते हैं लेकिन सरसों के दाने को मांगलिक, शगुन कहा। बड़े-बड़े फूलों को मांगलिक नहीं कहा लेकिन छोटे फूल मांगलिक होते हैं। बड़े-बड़े जानवर होते हैं लेकिन कुछ छोटे जानवर गाय, हाथी, घोड़ा ये मंगल है। मनुष्यों में पुरुष बड़ा होता है लेकिन पुरुष को, बालक को मंगल नही कहा, कन्या को मंगल कहा। चौक के लिए सौभाग्यवती महिला को बुलाया जाएगा। सौधर्मेन्द्र को मंगल कहा, जबकि उससे बड़े भी इंद्र होते है। बड़े-बड़े पहाड़ होते हैं लेकिन कैलाश पर्वत को शगुन के रूप में प्रस्तुत किया।
यदि हमें असमर्थता महसूस हो, हम कैसे जाने कि हमारा कार्य, हमारी यात्रा सफल होगी तो उस समय हमें कोई ऐसी शक्ति चाहिए जो हमें संकेत दे दे जाओ तुम्हारा कार्य सफल होगा, वो चैतन्य हो, सर्वज्ञ हो ये नियम नही। सबसे बड़ा शगुन वो माना जाता है जो स्वयं किसी का भला करता नहीं, स्वयं में किसी के भली की सोचता नहीं और जो उसको देख लेता है उसका भला हो जाता है। कलश को भी नहीं मालूम कि मैं किसी का मंगल हो सकता हूँ, महिला को भी नहीं मालूम कि मैं किसी का मंगल करने जा रही हूँ वह तो मात्र पानी भरकर ला रही है अनायास किसी यात्री के सामने आ जाए तो वह देखते ही कहे की शगुन हो गया। इसी तरह बिल्ली अपशगुन करने नहीं निकलती लेकिन अनायास देखने वाले ने कहा अपशगुन हो गया।
एक शगुन किया जाता है एक शगुन होता है, सबसे बड़ा शगुन वह होता है जो अनायास होता है। आपने ध्वजारोहण मंगल के लिए किया वह इतना बड़ा मंगल नहीं था, सबसे बड़ा मंगल है वो कि ध्वजा तुमने खोली, उस समय हवा ईशान कोण की चल गई, ये शगुन था। ध्वजा अपने आप में मंगल है ये पक्का है लेकिन ध्वज फहराते समय मंगल हो ये कोई नियम नहीं है। इसी ध्वजा से हम लोग अमंगल का ज्ञान करते हैं। ध्वजा किस कोने की ओर गयी हैं उससे निर्णय किया जाता है कि इस कार्यक्रम का क्या हंसल होगा। ध्वजा से संकेत मिलते हैं, इस तरफ से ध्वजा हुई तो पानी बरसेगा, इस तरफ से हुई तो पानी बरसेगा, इस तरफ अग्नि होगी, सारा ध्वजा पुराण है इस सम्बंध में।
आठ कोण व नीचे ऊपर की दश दिशाएं होती है लेकिन ईशान कोण वास्तु में सबसे ज्यादा शुभ माना गया, इसलिए वहां कहते हैं गंदगी नहीं करना, वहाँ वजन मत रखना क्योंकि वह शुभ है। कभी-कभी बड़ों की जरूरत नहीं है, मंगल, शगुन की जरूरत है। हर व्यक्ति को संदेह रहता है कि मैं ऐसा कर रहा हूँ सफल होउगा कि नहीं, शगुन कहता है कि मैं बिना कहे, बिना बोले आपको संकेत दे दूंगा, जाओ आपकी फतेह होगी।
सिद्ध भगवान जब विचार करेंगे तब मंगल है, अरिहंत भगवान का तो देखना भी मंगल हो जाता है। अरिहन्त भगवान देखने मे मंगल, उनका शरीर, सिंहासन, कल्पवृक्ष, चंवर, पुष्पवृष्टि मंगल, उनके समवशरण का एक एक अंग मंगल, जितना भी वैभव है सब मंगल है। वे दोनो लक्ष्मी के स्वामी है अरिहन्त अंतरंग व बहिरंग, यानी बाहर से भी मंगल है और अंदर से भी। अष्टप्रातिहार्य अरिहंत नही है लेकिन उनसे जुड़े होने से वह परपदार्थ भी मंगल हो गया, ये है श्रेष्ठ मंगल। समवशरण क्या है एक स्वर्ण है, सोना मंगल नही होता, लेकिन समवशरण भगवान से जुड़ने से मंगल हो गया।
जल को निम्नगा कहा- जो नीचे की तरफ जाता है, यदि वही जल भगवान को छू जाए तो मुनिराज के सिर पर पहुँच जाता है। जिस धुली ने, जिस जल ने भगवान को छू लिया है वह भी मांगलिक हो गया। जब आपको शगुन करना है, मुनि महाराज कोई है नही, मात्र आपके सामने आचार्य है उनके आशीर्वाद लेने, दर्शन करने जाओ तो आचार्य महाराज को भी आप साधु की दृष्टि में देखो, जाओ तुम्हारा शगुन ही शगुन हो गया। पूजा के लिए नही, शगुन के लिए कहा।